Monday, March 22, 2010

लगातार बढ़ता वित्तीय घाटा खतरे की बात

विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य' में कहा गया है कि भारत सहित अनेक दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए लगातार बढ़ता वित्तीय घाटा खतरे की बात है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि मंदी के दौर में बनाए गए रियायतों के बजट का समय अब बीत चुका है। ऐसे में, भारत तेजी से विकास तभी कर सकता है, जब वह राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को यह महसूस करना चाहिए कि उसकी अर्थव्यवस्था संभावनाओं से भरी है। ऐसा मत बनाने पर ही वह आर्थिक सुधारों और व्यापक आर्थिक नीतियों को लागू कर सकता है। इससे उसे अपनी ऊंची विकास दर कायम रखने में मदद मिलेगी। राहत की बात है कि हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इन बातों को समझा है। इसी आधार पर उन्होंने 2010-11 के आम बजट में राजस्व घाटा (रेवेन्यू डेफिसिट) तथा राजकोषीय घाट (फिस्कल डेफिसिट) को कम करने का लक्ष्य रखते हुए राजस्व और राजकोषीय मजबूती का रोड मैप प्रस्तुत किया है। आम भाषा में किसी वित्तीय वर्ष में कुल सरकारी आय और कुल सरकारी व्यय का अंतर राजस्व घाटा या बजटीय घाटा कहलाता है। जबकि, किसी वित्तीय वर्ष के राजस्व घाटे और सरकार द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज तथा अन्य देयताओं के भुगतान का योग राजकोषीय घाटा कहलाता है। 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों की राह पर चलते हुए वित्त मंत्री ने वर्ष 2010-11 के लिए राजस्व घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार फीसदी के स्तर पर तथा राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.5 फीसदी पर लाने का लक्ष्य रखा है जबकि चालू वित्त वर्ष 2009-10 में राजस्व घाटा जीडीपी के 5.3 फीसदी तथा राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है। यह राजस्व और राजकोषीय घाटा पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को 2012-13 में जीडीपी के 4.1 फीसदी पर लाने और राजस्व घाटे को वर्ष 2013-14 तक शून्य करने का लक्ष्य रखा है।

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