नीतीश कुमार की जीत के पीछे कई कारणों में से एक है मोदी के पूर्व सहयोगी
प्रशांत किशोर का उनके साथ होना। बताया जा रहा है कि अमित शाह की वजह से ही किशोर
ने मोदी का साथ छोड़कर नीतीश का साथ दिया। वह मई से ही नीतीश के लिए चुनावी रणनीति
तैयार करने में जुट गए थे।
बिहार चुनाव में मोदी और नीतीश-लालू के लड़ाई के बड़े चेहरे थे, लेकिन
पर्दे के पीछे की रणनीति भाजपा के लिए अमित शाह और नीतीश के लिए प्रशांत किशोर बना
रहे थे। नतीजों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि प्रशांत की रणनीति ने अमित शाह की
चालों को पूरी तरह नाकाम कर गठबंधन की जीता का मार्ग प्रशस्त किया।
साल 2011 में संयुक्त राष्ट्र जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ की नौकरी
छोड़ने के बाद वह नरेंद्र मोदी के साथ जुड़ गए थे। उन्होंने ही मोदी की छवि विकास
पुरुष की बनाई, 'चाय पर चर्चा' और '3डी होलोग्राम जैसे प्रोग्राम' की बदौलत मोदी के
नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त जीत दिलाई थी।
प्रशांत की टीम में शामिल एमबीए और आईआईटी ग्रेजुएट सहित कई पेशेवर सदस्यों
ने सोशल मीडिया के जरिये बड़ी संख्या में लोगों को मोदी से जोड़ने में कड़ी मेहनत
की थी। मगर, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह सहित कुछ नेताओं का मानना था
कि भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं की मेहनत के कारण ही मोदी को जीत मिली और किशोर की
टीम की भूमिका मामूली थी।
लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की चुनावी रणनीति में किशोर अपना प्रभाव गंवा
चुके थे। बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के आखिरी दौर में शाह से मिले थे और
उनसे पूछा था कि उन लोगों का जून के बाद क्या होगा? शाह ने तब किशोर को
सरकार की पॉलिसी मेकिंग में कोई भूमिका दिए जाने का आश्वासन नहीं दिया था।
इसके बाद प्रशांत किशोर ने अपने भविष्य को देखते हुए कुछ कांग्रेसी नेताओं
से संपर्क किया। हालांकि, बात नहीं बनी और उसके बाद अक्टूबर-नवंबर 2014 में वह जेडीयू सांसद पवन वर्मा के जरिये नीतीश कुमार से मिले। किशोर ने
दो शर्तों पर नीतीश के साथ काम करने पर रजामंदी दी।
बताया जा रहा है कि पहली शर्त थी कि नीतीश तक उनकी सीधी पहुंच हो और दूसरी
जीतन राम मांझी को बिहार के मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए। इसके कुछ ही समय बाद
नीतीश मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर खुद सीएम बने।
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