Wednesday, July 3, 2013

फोकस एक बार फिर 'रैडिकल इस्लाम' की तरफ

 केरल में मुस्लिम समुदाय के लोगों की इनकम बढ़ाने में काफी हद तक खाड़ी देशों के इकनॉमिक बूम का योगदान है, लेकिन पिछले 4 दशक के दौरान बढ़ी इस ताकत के कुछ नेगेटिव पहलू भी सामने आ रहे हैं। इससे समुदाय के कुछ लोगो में रैडिकलिज़म को भी हवा मिली है।

यह रुझान राज्य की मुख्य मुस्लिम पार्टी 'इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल)' के रवैये में देखा जा सकता है। जब यह पार्टी राज्य में कांग्रेस की लीड वाली सरकार में ज्यादा पावर पाने की जिद पर अड़ती है, तो फोकस एक बार फिर 'रैडिकल इस्लाम' की तरफ चला जाता है। हाल ही में राज्य में कांग्रेस यूनिट के प्रेज़िडेंट रमेश चेनिथला ने भी राज्य सरकार की अपनी इस सहयोगी पर 'बोझ' बनने का आरोप लगाया था।

राज्य की 140 मेंबर वाली विधानसभा में आईयूएमएल के 20 एमएलए हैं और इसके 5 मेंबर सरकार में मंत्री हैं। यह पार्टी कितनी कुख्यात हो चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रक्षा मंत्री ए.के एंटनी भी इसकी आलोचना कर चुके हैं। एंटनी ने इस पार्टी पर राज्य की माइनॉरिटी सरकार में मिनिस्टरी और अन्य फायदे हासिल करने के लिए अपनी 'बार्गेनिंग पावर' का यूज़ करने का आरोप लगाया।

पार्टी के कई और फैसलों की जबरदस्त आलोचना हुई है। पार्टी ने इंडस्ट्री मिनिस्टर और अपने नेता पी.के कुणालिकुट्टी के सुरक्षा गार्ड रहे के. अब्दुल राशिद को मल्लापुरम का रीजनल पासपोर्ट ऑफ़िसर नॉमिनेट किया था, जिस पर काफी कॉन्ट्रोवर्सी हुई। यही नहीं पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एक और लोकसभा सीट पाने के लिए मुस्लिम समुदाय की अधिक पॉप्युलेशन वाले मल्लापुरम ज़िले को दो भाग में बांटने की मांग पर भी अड़ी हुई है।

जानेमाने हिस्टोरियन एमजीएस नारायणन का मानना है कि आईयूएमएल भी पहले कांग्रेस का तरह ही एक सेक्युलर पार्टी थी, लेकिन बाद में यह PFI जैसी रैडिकल संगठनों को पीछे छोड़ उन्हें सपोर्ट करने वाले वोटबैंक को झटकने के खेल में लग गई। पिछले साल पीएम मनमोहन सिंह ने भी केरल में बढ़ रहे धार्मिक उन्माद की चर्चा करते हुए इसकी तुलना जम्मू-कश्मीर और असम से की थी।

गौर करने वाली बात यह है कि केरल में दूसरे देशों से आने वाली लगभग 60,000 करोड़ की रकम में एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम माइग्रेंट्स भेजते हैं। इसमें भी मल्लापुरम ज़िला सबसे टॉप पर है। नारायणन कहते हैं कि मुस्लिम माइग्रेंट्स जब खाड़ी देशों से लौटते हैं, तो उनमें इस्लाम के लिए रुझान काफी बढ़ जाता है। वे धर्म के नाम पर काफी खर्च भी करते हैं। नारायणन ने बताया कि हिंदू संगठनों को भी अब विदेशों से काफी रकम मिल रही है। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मों में धार्मिक उन्माद काफी बढ़ रहा है।

हालांकि एम.जी राधाकृष्णन जैसे राजनीतिक विशेषज्ञों की सोच इससे अलग है। उनका मानना है कि राज्य के मुस्लिम समुदाय में दिख रहा धार्मिक उन्माद चरमपंथ जैसा नहीं है। उन्होंने कहा, 'राज्य में मुस्लिम समुदाय अब पहले के मुकाबले ज्यादा धनी हुआ है और वह अपनी पहचान को लेकर भी काफी सजग रहता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।'

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