सफलता का कोई शॉर्टकर्ट नहीं है। कड़ी मेहनत और लगन से काम करने वाला आदमी सफल होता ही है। कानपुर के एक मोची के बेटे ने इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है। लोगों के चप्पल-जूते ठीक करने वाले के इस बेटे ने देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित एग्जाम आईआईटी एंट्रेंस में सफलता हासिल की है। एससी कटैगरी में उसकी 154वीं रैंकिंग है। कानपुर के किदवईनगर इलाके के रहने वाले एक मोची का बेटा अभिषेक कुमार भारती का आईआईटी में पढ़ने का सपना पूरा हो गया है। अभिषेक ने यूपी बोर्ड से पढ़ाई की है। 12वीं में उसने 78 फीसदी मार्क्स आए थे। अभावग्रस्त परिवार में पैदा होने के बावजूद अभिषेक का आईआईटी से ग्रेजुएट होने का लक्ष्य था। वह तमाम अभावों को दरकिनार करके अपने गोल के करीब पहुंच गया है। एंट्रेंस क्लियर करने के बाद आईआईटी से ग्रेजुएट होने का उसका सपना अब ज्यादा दूर नहीं है। शहर के गंगापुर कॉलोनी में रहने वाले अभिषेक ने
कहा कि मैं अपनी सफलता के लिए ईश्वर को बधाई देना चाहता हूं। कम सुविधाओं के बीच मुझे अपनी योग्यता साबित करने का साहस ईश्वर ने दी। मैंने लालटेन में पढ़ाई की, क्योंकि मेरे यहां बिजली नहीं है, लेकिन आखिरकार सब कुछ अच्छा रहा। उन लाखों युवाओं के लिए अभिषेक प्रेरणास्रोत्र हो सकता है, जो अभावों को बीच अपने लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। अभिषेक के घर में ना सिर्फ बिजली नहीं है, बल्कि 10 *10 एक कमरे में पूरा परिवार रहता है। घर में अभिषेक के पिता ही एक कमाने वाले हैं। कड़ी मेहनत करके वह अपने परिवार को पालन पोषण में लगे हुए हैं। कभी-कभी अभिषेक भी 6-7 घंटे के लिए मजदूरी करने जाता था। अपने बेटे की सफलता पर अभिषेक की मां संगीता ने देवी का कहना है कि यह सब भगवान के आशीर्वाद का फल है। बुनियादी सुविधाओं की कमी के बीच मेरे बेटे ने लालटेन की रोशनी में पढ़कर सफलता हासिल की है । संगीता देवी का कहना है कि अभिषेक की सफलता परिवार के अन्य बच्चों के लिए सफलता की राह तय करेगा। वे सभी पढ़ाई करने के प्रति जागरूक होंगे। अभिषेक की सफलता से उसके टीचर महेश सिंह चौहान भी बेहद खुश हैं। महेश सिंह ने अभिषेक को मुफ्त में ट्यूशन दी थी।
कहा कि मैं अपनी सफलता के लिए ईश्वर को बधाई देना चाहता हूं। कम सुविधाओं के बीच मुझे अपनी योग्यता साबित करने का साहस ईश्वर ने दी। मैंने लालटेन में पढ़ाई की, क्योंकि मेरे यहां बिजली नहीं है, लेकिन आखिरकार सब कुछ अच्छा रहा। उन लाखों युवाओं के लिए अभिषेक प्रेरणास्रोत्र हो सकता है, जो अभावों को बीच अपने लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। अभिषेक के घर में ना सिर्फ बिजली नहीं है, बल्कि 10 *10 एक कमरे में पूरा परिवार रहता है। घर में अभिषेक के पिता ही एक कमाने वाले हैं। कड़ी मेहनत करके वह अपने परिवार को पालन पोषण में लगे हुए हैं। कभी-कभी अभिषेक भी 6-7 घंटे के लिए मजदूरी करने जाता था। अपने बेटे की सफलता पर अभिषेक की मां संगीता ने देवी का कहना है कि यह सब भगवान के आशीर्वाद का फल है। बुनियादी सुविधाओं की कमी के बीच मेरे बेटे ने लालटेन की रोशनी में पढ़कर सफलता हासिल की है । संगीता देवी का कहना है कि अभिषेक की सफलता परिवार के अन्य बच्चों के लिए सफलता की राह तय करेगा। वे सभी पढ़ाई करने के प्रति जागरूक होंगे। अभिषेक की सफलता से उसके टीचर महेश सिंह चौहान भी बेहद खुश हैं। महेश सिंह ने अभिषेक को मुफ्त में ट्यूशन दी थी।
1 comment:
जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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