बच्चों और किशोरों की सोच में आ रहे ऐसे बदलावों की वजह क्या है, पूछने पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि परिवार से अपनापन नहीं मिलने की वजह से बच्चे भटक रहे हैं। सीनियर चाइल्ड सायकायट्रिस्ट डॉ. दीपक गुप्ता कहते हैं कि आजकल माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं। वे बच्चों को टीवी, कंप्यूटर, विडियोगेम जैसी चीजें उपलब्ध कराकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि अच्छे व्यक्तित्व के लिए बच्चों को परिवार के प्यार, देखभाल और नैतिक शिक्षा की भी जरूरत होती है। हिंसा से भरे टीवी प्रोग्राम, विडियो गेम्स, कार्टून जैसी चीजें देखकर बच्चे प्रोग्राम के कैरेक्टर को कॉपी करने की कोशिश कर रहे हैं। सीनियर साइकॉलजिस्ट डॉ. अरुणा ब्रूटा कहती हैं कि गुस्सा और डर एक प्राइमरी इमोशन है, जो शुरू से ही बच्चों में होता है और हिंसा देखकर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। डीयू के साइकॉलजी डिपार्टमेंट की प्रमुख डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, गंभीर बात यह है कि इस तरह की दिक्कतें हर वर्ग में देखने मिल रही हैं। सीनियर सायकायट्रिस्ट डॉ. समीर पारिख कहते हैं कि इन दिक्कतों पर नियंत्रण के लिए पैरंट्स और टीचर्स को यह ट्रेनिंग मिलनी चाहिए कि वे बच्चों के बिहेवियर को कैसे नियंत्रित करें। साथ ही स्कूली करिकुलम में जिंदगी की प्रैक्टिकल नॉलेज भी शामिल होना चाहिए।
Monday, May 10, 2010
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