सचमुच देश में मध्य वर्ग की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। देश की कुल आबादी में मध्य वर्ग की संख्या करीब 40 प्रतिशत है। इसके अलावा जैसे-जैसे विकास दर बढ़ रही है, वैसे-वैसे इसमें बड़ी संख्या में लोग जुड़ते जा रहे हैं। लेकिन देश में मध्य वर्ग का विशेष महत्व नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि मध्य वर्ग का एक बड़ा भाग मतदान नहीं करता है। हर साल बजट के पहले वित्तमंत्री उद्योगों, किसानों, श्रम संगठनों तथा विभिन्न लॉबियों के प्रतिनिधियों से मिलते हैं। बजट में इन सबकी मांगों और आवश्यकताओं के अनुरूप राहत पैकेज दिए जाते हैं। लेकिन मध्य वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन होने के बाद भी बजट का चमकीला हिस्सा नहीं बन पाता। मध्य वर्ग अपने विकास के लिए सकारात्मक वातावरण और उपयुक्त सुविधाएं चाहता है। वह मेरिट में विश्वास करता है और विकास के लिए समान अवसर चाहता है, समाज में शिक्षा और रोजगार के असमान अवसरों को ईर्ष्या का विषय मानता है, बढ़ती महंगाई से मुकाबले के लिए सरकार से कर राहत चाहता है। वह आवास, वाहन और उपभोक्ता कर्जों पर ब्याज रियायत चाहता है और पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, बेहतर प्रशासन और भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था की अपेक्षा रखता है। देश में उच्च शिक्षा के लिए 18000 कॉलेज और 500 यूनिवर्सिटी हैं लेकिन उच्च व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के लिए बजट आवंटन में लगातार कमी हुई है। 1990 के दशक में शिक्षा पर जीडीपी का चार फीसदी खर्च होता था जो हाल के सालों में गिरकर 3.5 फीसदी हो गया है। उच्च शिक्षा में सरकारी निवेश की कमी से देश की 90 फीसदी यूनिवर्सिटी दोयम दर्जे की शिक्षा दे रही हैं। आईआईटी, आईआईएम, रीजनल इंजिनियरिंग कॉलेज जैसे कुछ ही चमकीले शिक्षण संस्थान देश और विदेश में अपना परचम फहराते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन सरकारी क्षेत्र के ज्यादातर उच्च शिक्षा संस्थान संसाधन और गुणवत्ता की कमी के कारण निराशा के पर्याय बन गए हैं। इससे निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है और मध्य वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ गई हैं। 2010-11 के बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से आयकर राहत की उम्मीद थी लेकिन छोटे आयकर दाताओं को इसमें कोई फायदा नहीं मिला। जिन आयकरदाताओं की आय तीन लाख रुपए से कम है उन्हें पिछले बजट में जितना आयकर देना होता था उतना ही नए बजट के बाद भी देना होगा। निवेश के लिए धन जमा करके आयकर छूट लेना उनके बूते के बाहर है, फिर भी ज्यादातर लोग टैक्स सेविंग के लिए आयकर की धारा 80सी के तहत दिए गए निवेश विकल्पों की ओर देखते हैं। लेकिन 80 सी की भी एक सीमा है। इसके तहत फिलहाल एक लाख रुपए तक का निवेश करके अधिकतम 30,000 रुपए की बचत ही कर सकते हैं। नए बजट में वित्त मंत्री ने धारा 80 सी के तहत निवेश की सीमा को इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड के लिए 20 हजार रुपए बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए कर दिया है। न केवल महंगाई से मध्य वर्ग की जेब खाली हो रही है, वरन अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्य वर्ग द्वारा लिए जाने वाले सबसे जरूरी हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कन्जयूमर लोन आदि पर भी ब्याज दर बढ़ने के परिदृश्य ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) अर्थव्यवस्था के मंदी से बाहर आने पर कठोर मौद्रिक नीति की ओर बढ़ चला है। पिछले तीन सालों से नए ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी विशेष ग्राहक आकर्षण योजनाओं के तहत होम लोन, ऑटो लोन और उपभोग लोन पर आरंभिक वर्षों में रियायती ब्याज दर वसूलने वाले बैंकों ने आगे ऐसी स्कीमों जारी न रखने का फैसला किया है। देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई ने 1 मार्च, 2010 से 8.25 फीसदी की फिक्स्ड ब्याज दर पर मिलने वाली स्पेशल होम लोन योजना को समाप्त कर दिया है और अब यह 8.75 फीसदी से 9.50 फीसदी के फ्लोटिंग रेट पर होम लोन देगा। भारतीय मध्य वर्ग विकासपरक उद्देश्यों के लिए उपलब्ध सुविधाओं और संसाधनों से संतुष्ट नहीं है। सरकार को उसकी आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को समझना चाहिए। केंद्र और राज्यों के वित्त मंत्रियों को अपना-अपना हित साधने वाली उद्योग, कृषि और श्रम संबंधी लॉबियों के साथ-साथ बिना लॉबी वाले उस विशाल मध्य वर्ग पर भी ध्यान देना चाहिए जो देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उसकी नई पीढ़ी को शैक्षणिक राहत देने के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़े सुधार और वित्तीय सहयोग की जरूरत है। शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए राजनीतिक दखल, जातिवाद और कई दूसरी खामियों को दूर करना होगा। यह समझना जरूरी है कि मध्य वर्ग की मौजूदा शैक्षणिक परेशानियों को कोई विदेशी निवेशक या विदेशी संस्थान सरलता से बदल नहीं सकता। अत: केंद्र सरकार को ही उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के अजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। केंद्रीय वित्त मंत्री को मध्य वर्ग के आयकरदाताओं की बढ़ती निराशा पर भी ध्यान देना चाहिए और उसके लिए आयकर संबंधी राहत की मुठ्ठी खोलनी चाहिए। रेलों में यात्री किराए घटाए जाने चाहिए ताकि यातायात पर मध्य वर्ग के बढ़ते हुए व्यय में कमी आ सके। गरीबी की रेखा के ऊपर (एपीएल) आने वाले परिवारों को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती मूल्यों पर खाद्यान्न उपलब्ध होना चाहिए। हम आशा करें कि सरकार जिस तरह से गरीबों और अमीरों को विभिन्न सब्सिडियां और प्रोत्साहन पैकेज दे रही हैं, वैसे ही मध्य वर्ग को भी विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए उपयुक्त सरकारी राहत और सहयोग प्रदान करेगी। ऐसा होने पर मध्य वर्ग हताशा और बेचैनी को दूर कर देश के आथिर्क विकास का और अधिक सहयोगी व सहभागी बनता हुआ दिखाई देगा।
Thursday, April 29, 2010
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