26/11 मामले में अजमल कसाब को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा सोमवार को फांसी की सजा की पुष्टि से भले ही मुंबई क्राइम ब्रांच अपनी पीठ थपथपाए , लेकिन इस केस में फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद के बरी होने ने उसकी जांच पर फिर नए सिरे से सवाल उठा दिए हैं। फहीम और सबाउद्दीन को निचली अदालत ने भी बरी कर दिया था। दो - दो अदालतों के एक जैसे फैसले के बाद अब यह एकदम साफ हो गया है कि 26/11 को मुंबई में जिन जगहों पर दस आतंकवादियों ने फिदायीन हमला किया था , उन जगहों की रेकी फहीम या सबाउद्दीन ने नहीं , बल्कि डेविड हेडली ने लश्कर के कई आकाओं और तहव्वुर राना के कहने पर की थी। 26/11 से पांच दिन पहले तक राना मुंबई में ही था। लेकिन जब 26/11 का मुकदमा शुरू हुआ , तो हेडली और राना की साजिश का किसी को सुराग ही नहीं था। इसलिए मुकदमे के शुरुआती दौर में मुंबई क्राइम ब्रांच की कहानी को सच माना जाता रहा। अक्टूबर 2009 में हेडली और राना जब अमेरिका में गिरफ्तार हुए , उसी के बाद से तमाम लोगों का शक बढ़ गया कि फहीम और सबाउद्दीन को इस केस में गलत फंसाया गया है। इसकी मूल वजह यह थी कि दोनों ही आरोपी 26/11 के दिन ही नहीं , उससे सात महीने पहले से यूपी की जेल में बंद थे। मुकदमे के दौरान अपनी बात साबित करने के लिए मुंबई क्राइम ब्रांच नुरुद्दीन नामक गवाह की गवाही पर निर्भर रही , जिसने दावा किया कि फहीम ने जब नेपाल में सबाउद्दीन को नक्शा सौंपा , उस समय वह वहां मौजूद था। मुंबई क्राइम ब्रांच का दावा था कि ये नक्शे फहीम ने उस वक्त मुंबई की रेकी के दौरान बनाए थे , जब वह यूपी की जेल में बंद नहीं था। पर फैसले के दौरान अदालत ने कहा था कि पुलिस ने इस बात के कोई सबूत नहीं दिए कि नुरुद्दीन नेपाल गया था। मुंबई क्राइम ब्रांच ने फहीम द्वारा बनाया नक्शा पेश करते हुए कहा था कि यह नक्शा गिरगांव एनकाउंटर में मारे गए अबू इस्माइल की जेब से मिला था। लेकिन 26/11 का फैसला सुनाते वक्त जज तहिलियानी ने कहा था कि एनकाउंटर के बाद इस्माइल खून से लथपथ हो गया था। उसके कपड़े भी सन गए थे। लेकिन क्राइम ब्रांच ने जो नक्शा सबूत के तौर पर पेश किया , उसमें न तो कोई खून का निशान था और न ही वह कटा - फटा था। जिरह के दौरान बचाव पक्ष द्वारा यही मुद्दा हाई कोर्ट में भी उठाया गया।
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