Tuesday, February 8, 2011

चोरी और सीनाजोरी

सीवीसी प्रमुख पद पर नियुक्ति मामले की सुनवाई के दौरान पी. जे. थॉमस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि उनकी नियुक्ति को जूडिशियल रिव्यू के दायरे में नहीं लाया जा सकता। साथ ही दलील दी गई कि उनके खिलाफ करप्शन केस में चार्जशीट पेंडिंग होने से उनकी नियुक्ति को चुनौती नहीं दी जा सकती। थॉमस के वकील के. के. बेनुगोपाल ने कहा कि मतदाता कानून के तहत भी दोषी सांसद और एमएलए अपने पद पर बने रह सकते हैं भले ही आपराधिक मामलों में उनके दोषी साबित किए जाने के खिलाफ अपीलें पेंडिंग हों। हालांकि चीफ जस्टिस एस. एच. कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, दोष साबित होने का कोई तथ्य है और यदि कोई व्यक्ति नियुक्त किया जाता है तो क्या हम कह सकते हैं कि नियुक्ति की कोई न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को होगी। वेणुगोपाल ने कहा कि चूंकि कानून सीवीसी के तौर पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति की योग्यता और औचित्य को योग्य अथवा अयोग्य करार देता है इसलिए जब इसका सेलेक्शन होता है तब संबंधित अथॉरिटी के संतुष्टि के आधार पर इसका चयन होता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या नियुक्ति प्राधिकार समिति में शामिल सदस्यों के बीच अजेंडा के साथ पूरी फाइल रखी गई थी तब अटॉर्नी जनरल ने कहा कि थॉमस के मामले की पूरी फाइल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली हाई लेवल कमिटी के सदस्यों के सामने नहीं रखी गई थी, जिसने नियुक्ति का फैसला किया था। हालांकि वाहनवती ने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर उन्हें नहीं पता कि क्या हुआ, समिति ने क्या कहा, उन्होंने क्या किया और सदस्यों के बीच क्या रखा गया। हालांकि इस बात से इनकार कर दिया कि थॉमस की नियुक्ति में किसी तरह की प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ था।
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