बसों में यूनिफॉर्म वाले बेटिकट पुलिस वालों की मौजूदगी से ईव-टीजिंग (लड़कियों से छेड़खानी) और जेबतराशी पर लगाम लगती है। पुलिस वाले डीटीसी बसों में किराया भले ही नहीं दे रहे हों, लेकिन सिक्युरिटी मुहैया करा रहे हैं। पुलिस कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता के मुताबिक, इस मसले पर दिल्ली सरकार के सामने उन्होंने पुलिस महकमे का पक्ष रख दिया है। उन्होंने बताया कि दिल्ली की बसों में छेड़छाड़ और जेबतराशी की घटनाओं की आशंका बनी रहती है। अगर कोई पुलिस वाला वर्दी में बस में यात्रा करता है तो इस तरह की वारदातें करने वाले अपराधियों पर अंकुश लगता है। पुलिस कमिश्नर ने बताया कि विश्व के कई उन्नत देशों में सिटी बसों में सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं। डीटीसी बसों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं। इस कारण अपराधियों की विडियो फुटेज भी नहीं मिल सकती। ऐसी स्थिति में महिलाओं और बाकी नागरिकों के लिए यही बेहतर है कि यूनिफॉर्म वाले पुलिस वाले उनकी बस में सवार हों। वे किराया न सही, लेकिन सिक्युरिटी तो दे ही रहे हैं। पिछले हफ्ते डीटीसी ने दिल्ली सरकार के गृह विभाग को पत्र लिखकर बेटिकट पुलिस वालों के मसले को उठाया था। डीटीसी के मुताबिक हर दिन औसतन 15000 पुलिस वाले बेटिकट यात्रा कर रहे हैं, जिस कारण डीटीसी को हर दिन करीब डेढ़ लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। डीटीसी ने यह डिमांड की थी कि अगर पुलिस वाले किराया नहीं दे सकते तो पुलिस डिपार्टमेंट को उनकी ओर से एकमुश्त पेमेंट करना चाहिए। इसके बाद ही पुलिस कमिश्नर ने चीफ सेक्रेटरी राकेश मेहता से मिलकर पुलिस डिपार्टमेंट का पक्ष रखा है। दरअसल, यह समस्या ब्लूलाइन बसों के बंद होने की वजह से शुरू हुई है। ब्लूलाइन वाले पुलिसकर्मियों से किराया लेने की हिम्मत ही नहीं करते थे। हालांकि डीटीसी के कंडक्टर भी उनसे किराया नहीं मांग रहे हैं, लेकिन डीटीसी उनसे किराया वसूलना चाहती है। डीटीसी के अफसर अपने घाटे का हवाला दे रहे हैं। पुलिस के जवाब पर अभी दिल्ली सरकार का रुख साफ नहीं है। इस मुद्दे पर पुलिसकर्मियों का कहना है कि उन्हें थाने, कोर्ट और अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और बसों के किराए बहुत बढ़ चुके हैं। डीटीसी के पूर्व अवतार डीटीयू के साथ दिल्ली पुलिस के एमओयू में प्रावधान है कि एक बस में एक वर्दीधारी पुलिस वाला बेटिकट यात्रा कर सकता है।
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