मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया पाला पड़ने से हुई फसलों की बर्बादी को पुराने पापों का फल मानते हैं। उनका कहना है कि खेती में रसायनों का इस्तेमाल बढ़ने से मिट्टी की सेहत खराब हुई है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी है। ऐसा होने से मिट्टी में नमी नहीं रहती और पाला अपना असर दिखा जाता है। प्रदेश में पाले से फसलों को हो रहे नुकसान और किसानों द्वारा आत्महत्याएं करने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कुसमरिया ने बुधवार को कहा कि वेद पुराणों में कामधेनु व कल्पवृक्ष का जिक्र है, मगर आज हम उनसे दूर हो चले हैं। इसलिए प्राकृतिक प्रकोप बढ़ा है। उन्होंने कहा कि एक ओर जंगल कट गए हैं तो दूसरी ओर गाय का उपयोग कम हो रहा है। इस तरह संतुलन गड़बड़ा गया है, जिसके चलते यह सब हो रहा है। कुसमरिया ने प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ाने से मानव जाति के विलुप्त होने की भी आशंका जताई है। उनका कहना है कि जब डायनासोर विलुप्त हो सकते हैं, तो मानव क्या चीज है। उन्होंने आगे कहा है कि अब सचेत होने का वक्त आ गया है, अब प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर उसे प्रसन्न करना होगा। इसके लिए वृक्षारोपण करना होगा, गौ पालन को बढ़ावा देना होगा और जैविक खेती को अपनाना होगा। उन्होंने आशंका जताई कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो और भी घातक नतीजे सामने आएंगे। गौरतलब है कि कुसमरिया के गृह जिले दमोह में फसल बर्बाद होने व कर्ज के कारण दो किसान आत्महत्या कर चुके हैं और तीन किसानों ने आत्महत्या की कोशिश की है।
Friday, January 14, 2011
फसलों की बर्बादी पुराने पापों का फल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment