Thursday, September 19, 2013

आजम ने स्टिंग को बताया फर्जी- क्योंकि सच्चाई बहुत खराब है

 मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा तो शांत हो गई, मगर इसे लेकर अब चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। हिंसाग्रस्त इलाके में तैनात रहे पुलिस अधिकारियों को एक न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में कहते हुए दिखाया गया कि कवाल में हुई शुरुआती हिंसा के बाद डबल मर्डर के 7 आरोपियों को अरेस्ट कर लिया गया था, मगर लखनऊ से आजम नाम के नेता के फोन के बाद उन लोगों को छोड़ना पड़ा था। इस बीच विपक्ष द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री आजम खान को बर्खास्त करने और केस दर्ज करने की मांग के बीच उन्होंने कहा कि मैंने किसी को कोई फोन नहीं किया था। आजम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है और साजिशन उनका नाम खींचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि चैनल ने साजिशन उनका राजनीतिक करियर दागदार करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि दरोगा के मुंह में बात डाली गई।
भले ही यूपी सरकार दंगे भड़काने का दोष विपक्षी पार्टियों पर मढ़ रही हो, मगर न्यूज चैनल आज तक के स्टिंग ऑपरेशन में खुलासा हुआ है कि समाजवादी पार्टी के नेताओं के प्रेशर की वजह से ही हालात और खराब हुए थे। जिस वक्त दंगे जारी थे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि सरकार ने पुलिस और प्रशासन को काम करने की पूरी छूट दी है और किसी तरह का दबाव नहीं है। मगर इलाके के कुछ पुलिस ऑफिसरों की मानें तो दंगों के दौरान सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने पुलिस के काम में रोड़े अटकाए और कई थानों से पकड़े गए संदिग्ध लोगों को छुड़ाने का काम किया। स्टिंग ऑपरेशन में एक पुलिस ऑफिसर ने कहा कि फुगाना थाने पर लखनऊ से आजम नाम के नेता ने फोन कर कहा था, 'जो हो रहा है, होने दो।'

यूपी सरकार में मंत्री आजम खान ने इन खबरों को निराधार बताया है कि उन्होंने पुलिस पर किसी तरह का प्रेशर डाला था। उन्होंने कहा कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है और न ही वह इस बारे में कोई सफाई देना चाहते हैं। आजम ने नाराजगी जताते हुए कहा, 'जिस न्यूज चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन करने की कोशिश की है, उसको जांच भी कर लेनी चाहिए और मुझे सजा भी सुना देनी चाहिए।'
उन्होंने कहा कि चैनल ने अपने शब्द उन पुलिसकर्मियों के मुंह में डाले हैं, जिन्हें उस ऑपरेशन का आधार बनाया गया है। इसके अलावा उसके रिपोर्टर द्वारा पूछे गए सवाल को नहीं सुनाया गया, यह सही नहीं है। आजम खान ने कहा कि उनके अधिकारियों और दफ्तर के टेलिफोन नंबरों के कॉल डीटेल्स की जांच की जानी चाहिए। अगर यह साबित हो जाए कि उन्होंने किसी पुलिस अधिकारी को टेलिफोन किया था, तो उन्हें जो सजा देना चाहें दे दी जाए।
संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि उन्होंने पुलिस के कामकाज में कभी दखलंदाजी नहीं की और ऐसा करने के बजाय वह मर जाना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि वह एक साधारण आदमी हैं और किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। आजम ने आरोप लगाया कि चैनल ने जिस तरह का काम किया है उससे लगता है कि कुछ लोग मेरा राजनीतिक करियर डैमेज करना चाहते हैं।
आज तक के स्टिंग ऑपरेशन में जानसठ के सर्कल ऑफिसर जे. आर. जोशी को कैमरे पर कहते हुए दिखाया गया है कि 'ऊपर' के दबाव में सात-आठ संदिग्ध लोगों को छोड़ना पड़ा। जोशी ने बताया, 'ऊपर से नेता ने कहा, इनके खिलाफ एफआईआर किसी ने नहीं कराई है, इसलिए इन्हें छोड़ दो, जबकि प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि ये लोग हिंसा में शामिल थे।' जानसठ के एसडीएम आर.सी. त्रिपाठी ने भी सियासी दखल स्वीकार करते हुए कहा, नेता राजनीतिक फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
फुगाना थाने के सेकंड ऑफिसर आर.एस. भगौर छिपे हुए कैमरे से रेकॉर्ड किए गए विडियो में यह स्वीकार करते दिखे कि आजम ने फोन कर कोई हस्तक्षेप नहीं करने को कहा था। भगौर ने यह भी कहा कि दंगाइयों के मुकाबले फोर्स काफी कम थी, कई हथियार मौके पर नहीं चले, बड़े अफसरों से संपर्क नहीं हो पाया और सुरक्षा बल देरी से पहुंचे। फुगाना सर्वाधिक दंगा प्रभावित इलाकों में से एक है। यहां 8 सितंबर को सोलह हत्याएं हुई थीं।
एसएचओ मीरापुर ने कहा कि डीएम और एसएसपी को समाजवादी पार्टी नेता ने हटवाया, जबकि वे दोनों अच्छा काम कर रहे थे। एसएचओ भोपा समरपाल ने भी यही बात कही। उन्होंने कहा कि कवाल कांड के बाद डीएम-एसएसपी का तबादला गलत हुआ। अगर वे तीन-चार दिन तक और यहां पर तैनात रहते तो दंगा होता ही नहीं।
जिस वक्त न्यूज चैनल पर स्टिंग ऑपरेशन टेलिकास्ट हो रहा था, एक-एक करके ऑफिसर्स को लाइन हाजिर किया जा रहा था। सबसे पहले फुगाना के एसओ आर.एस. भगौर लाइन हाजिर किए गए। इस स्टिंग ऑपरेशन में एसओ भगौर, सीओ जोशी और एसडीएम त्रिपाठी के अलावा एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना, एसएचओ भोपा समरपाल सिंह, एसओ शाहपुर सत्यप्रकाश सिंह, एसएचओ मीरापुर एके गौतम और बुढ़ाना से हटाए गए इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह भी नजर आए थे।

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