मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर चौतरफा घिरी उत्तर प्रदेश
सरकार की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। दंगे के दौरान मुजफ्फरनगर में कैंप
करके मुस्तैदी से काम करते दिखे उत्तर प्रदेश के शीर्ष पुलिस अधिकारी एडीजी (लॉ
ऐंड ऑर्डर) अरुण कुमार यूपी में काम नहीं करना चाहते हैं। प्रतिनियुक्ति पर केंद्र
में जाने की अर्जी देने के बाद वह छुट्टी पर चले गए हैं। हालांकि, उन्होंने अर्जी
करीब दो महीने पहले दी थी, लेकिन हाल में स्मरण पत्र देने
से बुधवार को सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा
राजनीतिक हालात में वह अपने को फिट नहीं पा रहे हैं।
एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर के पद पर उनकी तैनाती सीएम अखिलेश यादव ने पिछले साल नवम्बर में उस वक्त की थी, जब प्रदेश में कई जिलों में हालत काफी तनाव पूर्ण थे। तब यह उम्मीद थी कि अरुण कुमार पुलिसिया कार्यशैली में बदलाव लाएंगे। अपनी कार्यशैली को लेकर पहचाने जाने वाले अरुण कुमार ने पदभार संभालने के बाद बीटवार ड्यूटी लगाने से लेकर वैज्ञानिक तरीके से तफ्तीश को बढ़ावा देने समेत कई अहम कदम उठाए, लेकिन उनके कुछ फैसलों को दरकिनार कर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई से वह असहज महसूस करने लगे।
खासतौर से गोंडा के तत्कालीन एसपी नवनीत राणा के मामले में जो कुछ हुआ उससे वह काफी असहज थे। राणा ने उनके कहने पर प्रदेश सरकार के मंत्री के करीबी पशु तस्कर के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन किया, लेकिन बाद में मंत्री के दबाव के चलते राणा को ही हटा दिया गया। सुभाष चंद्र दुबे को भी वह मुजफ्फरनगर खुद लेकर गए थे, लेकिन दुबे के निलंबन से उनको झटका लगा। डीएसपी जियाउल हक की हत्या के बाद उनकी सख्ती भी सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं को नागवार गुजरी। कुछ ऐसा ही नोएडा के एसएसपी शलभ माथुर के मामले में भी हुआ।
एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर के पद पर उनकी तैनाती सीएम अखिलेश यादव ने पिछले साल नवम्बर में उस वक्त की थी, जब प्रदेश में कई जिलों में हालत काफी तनाव पूर्ण थे। तब यह उम्मीद थी कि अरुण कुमार पुलिसिया कार्यशैली में बदलाव लाएंगे। अपनी कार्यशैली को लेकर पहचाने जाने वाले अरुण कुमार ने पदभार संभालने के बाद बीटवार ड्यूटी लगाने से लेकर वैज्ञानिक तरीके से तफ्तीश को बढ़ावा देने समेत कई अहम कदम उठाए, लेकिन उनके कुछ फैसलों को दरकिनार कर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई से वह असहज महसूस करने लगे।
खासतौर से गोंडा के तत्कालीन एसपी नवनीत राणा के मामले में जो कुछ हुआ उससे वह काफी असहज थे। राणा ने उनके कहने पर प्रदेश सरकार के मंत्री के करीबी पशु तस्कर के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन किया, लेकिन बाद में मंत्री के दबाव के चलते राणा को ही हटा दिया गया। सुभाष चंद्र दुबे को भी वह मुजफ्फरनगर खुद लेकर गए थे, लेकिन दुबे के निलंबन से उनको झटका लगा। डीएसपी जियाउल हक की हत्या के बाद उनकी सख्ती भी सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं को नागवार गुजरी। कुछ ऐसा ही नोएडा के एसएसपी शलभ माथुर के मामले में भी हुआ।
No comments:
Post a Comment