Wednesday, November 20, 2013

अन्ना की टोपी ,

सब जानते हैं , “अन्ना की टोपी”´ और यह टोपी पिछले वर्ष 2012 में माननीय अन्ना जी द्वारा चलाये गए आंदोलन में  खूब चली । मैं भी टोपी पहनकर “ मैं भी अन्ना “ के नारे लगता था । मैं भी अन्ना आदि, और ऐसा कर मुझे गर्व होता था कि आंदोलन के जरिये हम भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने मे सफल हो जाएंगे  । मतलब यह कि इस टोपी को “अन्ना जी का पर्याय” भारतीय जनमानस ने अपने  लिए मान लिया , इसलिए नहीं कि कुछ अलग होकर लोग भी इस टोपी का प्रयोग अपने फायदे के लिए कर सकेंगे । मुझे अभी भी शक है कि अन्ना जी ने इस टोपी को पहनकर अपना उल्लू सीधा करने का अधिकार किसी को दिया है और यदि ऐसा है तो लोग अन्ना जी को भी भूलने मे समय नहीं लगाएंगे  ऐसा मेरा मत है । अन्ना जी आरंभ से ही राजनीति करने के खिलाफ थे ।  अतः आज भी कह रहे हैं कि अन्ना कार्ड से मेरा कोई मतलब नहीं,  पैसे से मेरा कोई मतलब नहीं । अन्ना जी मैं आपका तहे दिल से अभिनंदन करता हूँ । आप पारदर्शी हैं, कोई शक नहीं फिर भी क्या यह सत्य हैं कि :
·         क्या “आप पार्टी “ वाले आंदोलन से पहले “ मैं भी अन्ना “ टोपी का इस्तेमाल करते थे ?
·         यदि नहीं , तो आज अपनी अलग पार्टी बनाकर भी  टोपी का इस्तेमाल क्यों ?
·         यह सत्य है कि चंदा तो टोपी को ही मिला । झाड़ू को नहीं ।
·         मुझे याद है कि आपने चुनाव के लिए अपना नाम किसी भी प्रकार से इस्तेमाल करने पर विरोध जताया था तो आज फिर आपके प्रतीक टोपी का इस्तेमाल क्यों ?
·         आपके द्वारा शुद्ध रूप से मना करने के बावजूद टोपी का इस्तेमाल करके क्या आपका इस्तेमाल चुनाव के लिए नहीं हो रहा है ?
·         चुनावी चंदा किसी प्रतीक पर मिलता है जो कि टोपी है ।
·         क्या टोपी दिखाकर चंदा मांगना अन्ना जी का इस्तेमाल नहीं है ?
·         यदि नहीं, तो फिर टोपी क्यों नहीं उतार देते और अपनी पूर्व वेषभूषा मे आकर अर्थात बिना टीपी चुनाव ।
अगर “आप पार्टी “ वाले  इन तथा कथित नेताओं मे आपका इस्तेमाल नहीं किया तो “आप पार्टी “ के सभी लोग टोपी का इस्तेमाल क्यों करते हैं ?

कृपया विचार करें और अपने नाम का इस्तेमाल आपके नाम पर वोट मांगने के लिए न होने दें । 

Monday, November 18, 2013

अन्ना जी के नाम खुला पत्र

महोदय,
मैं आपका आलोचक नहीं हूँ , और बीजेपी या कांग्रेस  का कार्यकर्ता भी नहीं । लेकिन आपसे और आपकी स्वच्छ छवि , बेदाग जीवन से प्रेरणा लेता रहा हूँ । भारत के करोड़ो लोग और युवा भी आपसे प्रेरणा लेते रहे हैं ।   पिछले दो दिन की खबरों से मैं भी आहत हुआ हूँ । मैं आपको कोई सलाह भी नहीं दे सकता परंतु प्रार्थना कर सकता हूँ कि आप भूतकाल की तरह मेहरबानी कर अपने सिद्धांतों पर कायम रहे, और आगे भी कायम रहें । आपका नाम लेकर वोट लेना या चंदा लेना  मेरी समझ में आपके प्रति अन्याय है । वे कुछ भी सफाई दें लोग आपके नाम से ही चंदा देते हैं ।

मैं माननीय केजरीवाल जी पर कोई टिप्पणी भी नहीं करना चाहता क्योंकि वह इस लायक नहीं है कि कोई आम आदमी उस जैसे पर कोई टिप्पणी करे । दिल्ली में रहकर कुछ ऐसा होना स्वाभाविक है कि केजरीवाल भी आज आपकी वजह से मलमाल हो गए । 20 करोड़ का चंदा मिल गया , आपको आंदोलन के लिए इतना चंदा नहीं मिला  यह उनका तर्क हो सकता है । उनकी पार्टी के अधिकतर उम्मीदवार करोड़पति हैं , तो आम आदमी की पार्टी का ढोंग क्यों ? आज आपके नाम से चंदा लेकर आपको धोका दे रहे हैं यदि जीत गए तो देश के आम आदमी को ही धोका देंगे ।

राजेंद्र गुप्ता , मुंबई 

अमित शाह के अपने 'साहब' के इशारे पर युवा महिला आर्किटेक्ट का पीछा करवाने के मामले में कई सनसनीखेज बातें

गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री और यूपी में बीजेपी के चुनाव प्रभारी अमित शाह के अपने 'साहब' के इशारे पर युवा महिला आर्किटेक्ट का पीछा करवाने के मामले में कई सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं।  'मुंबई मिरर' की पड़ताल के मुताबिक 'साहब' का इस युवती से करीबी रिश्ता था। 'साहब' ने युवती को अपना पर्सनल मोबाइल नंबर दे दिया था और दोनों के बीच इस नंबर पर दिन में 18 बार तक बातें हुई हैं।
लड़की का पीछा क्यों करवाया गया, इसकी कहानी एक मिस्ड कॉल से शुरू हुई। यह मिस्ड कॉल साहब के पर्सनल नंबर पर आई थी। इसके बाद से ही इस युवती को दो महीने अवैध रूप से सर्विलांस पर रखा गया।
न्यूज़ पोर्टल कोबरापोस्ट और गुलेल ने शुक्रवार को खुलासा किया था कि यह सर्विलांस 2009 में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री और नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह के कहने पर शुरू किया गया था। दावा यह भी है कि यह आदेश किसी 'साहब' के इशारे पर दिया गया। हालांकि साहब कौन हैं इस बात का खुलासा नहीं हुआ है।
हमारे सहयोगी अखबार मुंबई मिरर के सूत्रों के मुताबिक 62 दिन चले इस सर्विलांस में गुजरात के आठ बड़े पुलिस अधिकारी शामिल थे। इस पूरी कार्रवाई की कमान आईपीएस अधिकारी जी एल सिंघल के हाथों में थी। सिंघल को उस समय अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता था। हालांकि उसके बाद से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए हैं। अमित शाह और जी एल सिंघल दोनों राज्य में हुए दो अलग-अलग फर्जी एनकाउंटरों के मामले में आरोपी हैं और फिलहाल बेल पर बाहर हैं। अमित शाह जहां सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के आरोपी हैं वहीं सिंघल पर इशरत जहां एनकाउंटर मामले में आरोप लगाए गए हैं।
सिंघल ने शाह से अपनी नजदीकी के बावजूद उनसे हुई बातचीत की कुछ रिकॉर्डिंग्स अपने पास रखी थीं। इस साल जून में सिंघल ने इस बातचीत के 267 रिकॉर्डिंग्स सीबीआई को सौंप दी। इन रिकॉर्डिंग्स में इस पूरे सर्विलांस के मामले की डीटेल्स हैं।
मामले की जानकारी रखने वाले नजदीकी सूत्रों का कहना है कि इस युवती से 'साहब' की मुलाकात पहली बार 2005 में हुई थी। उसने भूकंप प्रभावित भुज में सरकारी पुनर्निर्माण के प्रयासों के तहत एक हिल गार्डन डिजाइन किया था। दोनों की मुलाकात तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा ने कराई थी। शर्मा इस मामले में एक अहम कड़ी के तौर पर सामने आए हैं।
 इस मुलाकात के दौरान 'साहब' ने उसके काम से खुश होकर युवती की तारीफ की। बाद में 'साहब' ने दूसरे शहर के अपने दफ्तर से भी इस युवती को कॉल किया। प्रफेशनल तारीफ से शुरू हुआ यह रिश्ता बाद में गहराता चला गया। 'साहब' ने बाद में उसे अपना पर्सनल सेल नंबर (******3400) भी दे दिया जिससे वह कभी भी उनसे बात कर सकती थी। कहा जा रहा है कि एक समय यह हाल भी था कि दोनों के बीच एक दिन में 18 बार बात हुई।
इस युवती ने 'साहब' के साथ अपने रिश्ते के बारे में अपने दोस्त भुज के कलेक्टर और दोनों को पहली बार मिलवाने वाले प्रदीप शर्मा को बताया। कथित तौर पर युवती ने शर्मा को साहब के प्राइवेट नंबर से भेजे गए कुछ टेक्स्ट मेसेज भी दिखाए। कहा जा रहा है कि शर्मा ने यह नंबर सेव कर लिया। बाद में 'साहब' के पजेसिव बिहेवियर और एक अन्य कारण से दोनों के संबंधों में समस्याएं आ गईं। साहब चाहते थे कि सार्वजनिक तौर पर यह दिखे कि वह इस युवती को अपनी बेटी की तरह मानते हैं।
प्रदीप शर्मा को इस बारे में पता चला तो साहब के प्राइवेट नंबर पर फोन लगा दिया। कॉल उठाया तो नहीं गया लेकिन इस मिस्ड कॉल से साहब को संदेह हो गया कि आखिर उनका पर्सनल नंबर किसके पास है। कॉल डीटेल्स में शर्मा का नाम सामने आ गया। इस मिस्ड कॉल के बाद से ही युवती और 'साहब' के संबंधों का समीकरण बदल गया।
शर्मा के फोन पर नजर रखी गई और यह बात सामने आ गई कि शर्मा और यह युवती बराबर संपर्क में रहते थे। सूत्रों के मुताबिक, इसके बाद ही अमित शाह ने इस युवती पर सर्विलांस लगाने का आदेश दिया। कोबरापोस्ट और गुलेल के मुताबिक, 'साहब' इस युवती के बारे में सबकुछ जानना चाहते थे- वह क्या करती है, कहां जाती है, किससे मिलती है। सिंघल इस सर्विलांस की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसी दौरान अमित शाह से हुई बातचीत उन्होंने रिकॉर्ड करके रखी थी। इन्हीं टेप्स को सीबीआई को सौंपा गया है और इन्हें इशरत जहां केस के पंचनामे में शामिल भी किया गया है।
माना जा रहा है कि कुछ ही दिनों बाद प्रदीप शर्मा को उनकी हरकत का दंड मिल गया। उनके खिलाफ गुजरात सरकार ने आपराधिक मामलों में चार शिकायतें दर्ज कराई हैं। शर्मा को सस्पेंड कर दिया गया और फिर वह गिरफ्तार भी कर लिए गए। 62 दिनों तक चला सर्विलांस का सिलसिला तब खत्म हुआ जब इस युवती ने शादी कर गुजरात छोड़ने का फैसला किया।
हालांकि, इस युवती के पिता ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री उनके पुराने पारिवारिक मित्र हैं और उन्होंने ही मुख्यमंत्री से अपनी बेटी का खयाल रखने का निवेदन किया था। उनकी बेटी बेंगलुरु से अहमदाबाद आई थी और उसे अपनी मां के इलाज के सिलसिले में 'ऑड आवर्स' पर बाहर निकलना पड़ता था। उनका कहना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री और उनकी बेटी का रिश्ता बाप-बेटी की तरह था।
इस पूरे मामले पर जहां अमित शाह ने हमारे मेसेज या कॉल का कोई जवाब दिया, वहीं सिंघल ने यह कहकर किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया कि मामले में अभी जांच चल रही है। उधर, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कोबरापोस्ट और गुलेल के खुलासों को खारिज करते हुए कहा है कि इस पूरे मामले के पीछे कांग्रेस के 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' का हाथ है। गुजरात सरकार के प्रवक्ता और मंत्री नितिन पटेल का कहना है कि गुजरात सरकार इस मामले की पूरी रिपोर्ट देखने के बाद ही कुछ कहेगी।

Wednesday, November 13, 2013

अगर आप रेप को नहीं रोक सकते हैं, तो इसका आनंद लीजिए

 सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा खेलों में सट्टेबाजी को कानूनी रूप देने की पैरवी करते हुए एक बेतुका बयान देकर विवादों में फंस गए हैं। उन्होंने सट्टेबाजी की तुलना रेप से करते हुए अपनी बात समझाने के लिए एक अजीबोगरीब उदाहरण दे डाला। सिन्हा के इस बयान की चौतरफा निंदा हो रही है। महिला संगठनों ने उनकी जमकर आलोचना करते हुए पद से हटाने की मांग की है।
टीम अन्ना की सदस्य रहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने भी सिन्हा से इस बयान के लिए माफी मांगने को कहा है। हालांकि, सिन्हा ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि उनके कहने का मतलब बस इतना था कि सट्टेबाजी पर बैन जारी रखना बेहद मुश्किल काम है। इसी बात को समझाने के लिए उन्होंने यह उदाहरण दिया था।
सीबीआई डायरेक्टर का यह विवादित बयान नई दिल्ली में सीबीआई की गोल्डन जुबली सिलेब्रेशन के सवाल-जवाब सेशन के दौरान आया। आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और करीब 66 हजार करोड़ रुपये की सट्टेबाजी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सिन्हा ने कहा, 'यदि राज्यों में लॉटरी चल सकती है, यदि हमारे हॉलिडे रिजॉर्ट में कसीनो हो सकते हैं, यदि सरकार काला धन के स्वैच्छिक खुलासे की योजना की घोषणा कर सकती है, तो सट्टेबाजी को कानूनी रूप देने में क्या नुकसान है? क्या आपके पास इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए एजेंसी है? नहीं ना? यह कहना उसी प्रकार है कि अगर आप रेप को नहीं रोक सकते हैं, तो इसका आनंद लीजिए।'

Friday, November 8, 2013

पटेल के दबाव से कश्मीर में सेना भेजने का निर्णय हुआ

सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर झा की ओर से किए गए मानेकशॉ के इंटरव्यू के हवाले से आडवाणी ने कहा कि महाराजा हरि सिंह की ओर से विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। इसमें नेहरू, पटेल और रक्षा मंत्री बलदेव सिंह आदि शामिल हुए। मानेकशॉ ने उसमें 'सैन्य स्थिति' को पेश किया और सुझाव दिया कि भारतीय सेना को आगे बढ़ना चाहिए। आडवाणी ने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा कि हमेशा की तरह नेहरू संयुक्त राष्ट्र, रूस, अफ्रीका, ईश्वर और हर किसी की उस समय तक बात करते रहे, जब तक कि सरदार पटेल ने अपना आपा नहीं खो दिया। उन्होंने कहा कि जवाहरलाल, आप कश्मीर चाहते हैं या आप उसे गंवाना चाहते हैं? नेहरु ने कहा, 'निस्संदेह, मैं कश्मीर चाहता हूं।' तब पटेल ने कहा, 'मेहरबानी करके आदेश दीजिए।' और इससे पहले कि वह कुछ कहते पटेल मेरी तरफ पलटे और कहा, 'आपको आदेश मिल चुका है'।बीजेपी नेता ने कहा कि इसके बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लेने के लिए श्रीनगर विमानों से भेजा गया और महाराजा हरि सिंह के मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान की ओर पाला बदल लिया। आडवाणी ने कहा कि मानेकशॉ और प्रेम शंकर झा से संबंधित यह रिपोर्ट नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों की ठोस पुष्टि करती है। इससे पहले उन्होंने अपने ब्लॉग पर 5 नवंबर को 1947 बैच के आईएएस अधिकारी एम. के. के. नायर की पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ ऐन ऐरा टोल्ड विदआउट इल विल' का हवाला दिया।
इस किताब में हैदराबाद के खिलाफ 'पुलिस कार्रवाई' से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच हुए कथित 'तीखे वार्तालाप' का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया कि नेहरू हैदराबाद के भारत में विलय के लिए पटेल की पुलिस कार्रवाई की योजना के खिलाफ थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने गुरुवार को हालांकि बीजेपी नेता की ओर से पेश इस सामग्री पर संदेह जताते हुए ट्वीट किया कि आईएएस की स्थापना 1946 में हुई थी। अगर नायर ने 1947 में ज्वाइन किया तो क्या उस स्तर के अधिकारी को 1948 में कैबिनेट की गोपनीय चर्चाओं की जानकारी हो सकती थी? गौरतलब है कि बीजेपी कुछ समय से सरदार पटेल को हिंदुत्व की विचारधारा के करीब बताने की कोशिश कर रही है।सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।

गोल्डमैन सैक्स ने नरेंद्र मोदी फैक्टर की वजह से भारत की रेटिंग 'अंडरवेट' से बढ़ाकर 'मार्केटवेट' करने का फैसला किया

कॉमर्स और इंडस्ट्री मिनिस्टर आनंद शर्मा ने 'देश की अंदरूनी राजनीति को लेकर बयान देने पर' गोल्डमैन सैक्स की कड़ी आलोचना की है। ऐसा बहुत कम हुआ है, जब किसी सीनियर मिनिस्टर ने ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक के बारे में इस तरह की बात कही हो। गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि बीजेपी की लीडरशिप वाला एनडीए अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर सकता है।
इस हफ्ते गोल्डमैन सैक्स ने नरेंद्र मोदी फैक्टर की वजह से भारत की रेटिंग 'अंडरवेट' से बढ़ाकर 'मार्केटवेट' करने का फैसला किया था। 'मोदी-फाइंग आवर व्यू' रिपोर्ट गोल्डमैन ने कहा था, 'अभी भारत उच्च राजस्व घाटा, ज्यादा महंगाई दर और सख्त मॉनेटरी पॉलिसी जैसी मुश्किलों का सामना कर रहा है। हालांकि, अगले साल केंद्र में सत्ता बदलने की उम्मीद इन पर भारी पड़ रही है। माना जा रहा है कि मई 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अगुवाई में केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी।' बैंक के अनालिस्टों ने इनवेस्टर्स को भेजे नोट में लिखा है, 'इक्विटी इनवेस्टर्स बीजेपी को बिजनेस-फ्रेंडली मानते हैं। वे समझते हैं कि बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी बदलाव के प्रतीक हैं।'
इस रिपोर्ट पर मोदी या बीजेपी की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन शेयर बाजार में हवा मजबूत हुई है कि 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत हो सकती है। कांग्रेस की लीडरशिप वाले यूपीए और उसके मंत्रियों को यह बात नागवार गुजरी है। ओपियन पोल में भी बीजेपी को जीतता हुआ दिखाने पर कांग्रेस ने इस विषय पर टीवी चर्चाओं का बॉयकॉट कर दिया है। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट को खारिज करते हुए यूपीए सरकार ने कहा है कि भारतीय इकॉनमी की खराब हालत ग्लोबल फैक्टर्स के चलते है। सरकार ने अपनी तरफ से हालात सुधारने के लिए हर कोशिश की है। शर्मा ने कहा कि चुनाव और राजनीति को वोटरों पर छोड़ देना चाहिए।

Monday, November 4, 2013

अदालतों पर बैन क्यों नहीं लगा दिया जाए ?

ओपिनियन पोल को बैन करने की कांग्रेस की मांग पर बवाल बढ़ता जा रहा है। बीजेपी के पीएम कैंडिडेट और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को इस रुख को 'बचकाना' करार देते हुए अपने ब्लॉग में लिखा है, 'मेरी चिंता केवल ओपिनियन पोल्स पर बैन लगाने की कांग्रेस की मांग तक ही सीमित नहीं है। कल कांग्रेस चुनाव के समय इसी आधार पर लेख, संपादकीय, ब्लॉग लिखने पर रोक लगाने की मांग कर सकती है। अगर वे चुनाव हार गए तब चुनाव आयोग पर बैन लगाने की मांग कर सकते हैं।'
मोदी ने लिखा, 'अगर अदालतें कांग्रेस के पक्ष में फैसले नहीं देंगी तो वह कह सकती है कि अदालतों पर बैन क्यों नहीं लगा दिया जाए। इस पार्टी ने अदालत के असहज फैसले के जवाब में आपातकाल लगाया था।'
नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग के जरिए लोगों से कांग्रेस को न केवल ओपिनियन पोल में बल्कि मतदान केंद्र पर भी खारिज करने की अपील की है।
मोदी के मुताबिक, 'स्वतंत्रता के बाद जिन लोगों ने भारतीय राजनीति और कांग्रेस पार्टी के कामकाज को देखा होगा, वे सहमत होंगे कि उनके लिए कांग्रेस पार्टी का रुख आश्चर्य भरा नहीं है।' उन्होंने कहा, 'सत्ता में होने पर कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी समस्या उसका अहंकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकारों को कुचलने की प्रवृत्ति है।'
मोदी ने सोमवार को अपने ब्लॉग 'टुडे ओपिनियन पोल्स, वाट नेक्स्ट' में लिखा, 'अगर आप मुझसे पूछें, तो इसका हल बहुत आसान है। कांग्रेस के निरंकुश और विध्वसंकारी हथकंडों से निपटने की बजाए, अच्छा यह होगा कि हम अलोकतांत्रिक कांग्रेस को न केवल ओपिनियन पोल में बल्कि मतदान केंद्र पर भी खारिज करें।'
मोदी ने कहा, 'जैसा हम सुनना चाहते हैं, वैसे पोल के रिजल्ट नहीं आ रहे हैं। सिर्फ इसलिए ओपिनियन पोल्स को बैन कर देना चाहिए, इस तरह का कदम उठाना पूरी तरह से बचकाना है।'
ओपनियन पोल्स के बारे में उन्होंने लिखा कि उनका किसी खास से कोई लगाव नहीं है। मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा, 'वास्तव में मैं इनकी सीमाओं से परिचित हूं। हमारे जानकार चुनाव विश्लेषकों ने अनुमान व्यक्त किया कि साल 2002 में गुजरात में कैसे बीजेपी के खिलाफ मतदान होगा। इसके बाद 2007 और फिर 2012 में ऐसे बड़े विश्वास से पेश किए गए ओपिनियन पोल्स को लोगों ने गलत साबित किया था।'
कांग्रेस ने पिछले हफ्ते चुनाव आयोग को पत्र लिखकर चुनाव के दौरान ओपिनियन पोल पर रोक लगाने की बात कही थी। कांग्रेस ने ओपिनियन पोल को दोषपूर्ण, विश्वसनीयता की कमी और स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया करार दिया था

Sunday, November 3, 2013

शुभकामनायें

दीप पर्व की शुभकामनायें