उन्होंने बताया कि मंदिर के स्थापत्य को आधुनिक रूप देने के लिए उसकी दीवारों पर भौतिकी, रसायन और गणित के चिह्न तथा फार्मूले एवं अंग्रेजी भाषा में सूत्र वाक्य के साथ नीति वचन आदि उकेरे जाएंगे। यह पूछे जाने पर कि इस अनूठे मंदिर के निर्माण की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली, प्रसाद ने बताया कि देश में आजादी के बाद जब राष्ट्रीय भाषा के चयन को लेकर बहस चल रही थी, तब संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने अंग्रेजी को यह दर्जा दिए जाने की जोरदार वकालत की थी। उन्होंने कहा कि हालांकि तब देश के अन्य अग्रणी नेता आम्बेडकर से सहमत नहीं हुए थे। मगर अब रोजी-रोटी के बाजार में जिस तरह अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य कायम हो गया है, उससे उनके तर्क सही सिद्ध हुए हैं। प्रसाद ने कहा, हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं से कोई विरोध नहीं है। मगर अब इस बात में तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश बची नहीं है कि जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान आवश्यक है। संयोग से दलित समाज इसमें काफी पिछड़ा हुआ है और जीवन के तमाम क्षेत्रों में उनके पिछड़े रहने का यह भी एक बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि इस पहल का मकसद मंदिर के जरिए दलित समुदाय के छात्रों को अंग्रेजी सीखने के लिए प्रेरित करना है।
Saturday, October 30, 2010
अंग्रेजी देवी की मूर्ति लगवाई
उन्होंने बताया कि मंदिर के स्थापत्य को आधुनिक रूप देने के लिए उसकी दीवारों पर भौतिकी, रसायन और गणित के चिह्न तथा फार्मूले एवं अंग्रेजी भाषा में सूत्र वाक्य के साथ नीति वचन आदि उकेरे जाएंगे। यह पूछे जाने पर कि इस अनूठे मंदिर के निर्माण की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली, प्रसाद ने बताया कि देश में आजादी के बाद जब राष्ट्रीय भाषा के चयन को लेकर बहस चल रही थी, तब संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने अंग्रेजी को यह दर्जा दिए जाने की जोरदार वकालत की थी। उन्होंने कहा कि हालांकि तब देश के अन्य अग्रणी नेता आम्बेडकर से सहमत नहीं हुए थे। मगर अब रोजी-रोटी के बाजार में जिस तरह अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य कायम हो गया है, उससे उनके तर्क सही सिद्ध हुए हैं। प्रसाद ने कहा, हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं से कोई विरोध नहीं है। मगर अब इस बात में तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश बची नहीं है कि जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान आवश्यक है। संयोग से दलित समाज इसमें काफी पिछड़ा हुआ है और जीवन के तमाम क्षेत्रों में उनके पिछड़े रहने का यह भी एक बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि इस पहल का मकसद मंदिर के जरिए दलित समुदाय के छात्रों को अंग्रेजी सीखने के लिए प्रेरित करना है।
Thursday, October 21, 2010
शादी दिसंबर में नहीं बल्कि मार्च में होगी।
पीलीभीत से बीजेपी सासंद और गांधी परिवार के एक और चिराग वरुण गांधी और यामिनी रॉय की शादी दिसंबर में नहीं बल्कि मार्च में होगी। पिछले महीने सितंबर में यह खबर आई थी कि वरुण को अपनी जीवन साथी मिल गई है और कहा जा रहा था कि वरुण और यामिनी की शादी दिसंबर में होगी, लेकिन हमारे सहयोगी अखबार दिल्ली टाइम्स की खबरों के मुताबिक उनकी शादी में मार्च में होगी। वरुण के कज़िन ने बताया कि यह पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से होगी। शादी मार्च के पहले हफ्ते में होगी और शादी से पहले सगाई नहीं की जाएगी। शादी का मुहुर्त और दूसरी रस्में पंडित के बताए अनुसार ही की जाएंगी।
वरुण ने कज़िन आर्यमन शुक्ला ने बताया कि परिवार के साथ-साथ भैया और भाभी दोनों ही इन परंपराओं में यकीन रखते हैं और इन्हें मानते हैं। हालांकि यामिनी के पिता बंगाली ब्राह्मण हैं, लेकिन शादी विशुद्ध उत्तर भारतीय तौर-तरीके से होगी। आर्यमन ने बताया- यामिनी और भैया की मुलाकात 2004 में न्यू यॉर्क में हुई थी और धीरे-धीरे जान पहचान बढ़ी। दिल्ली आकर दोनों एक दूसरे के संपर्क में रहे। दोनों ही परिवार पिछले तीन सालों से एक-दूसरे को जानते हैं। भैया और यामिनी में बहुत सी बातें मिलती हैं। दोनों को भारतीय परंपरा के अलावा मॉर्डन आर्ट पसंद हैं। दोनों को ही हिंदी फिल्में देखना और किताबें पढ़ने का शौक है। दोनों के शादी करने के फैसले पर परिवारवालों को कोई हैरानी नहीं हुई। दोनों का पार्टी वगैरह में जाने की बजाए घर पर रहकर परिवार के साथ समय बिताना पसंद है। आर्यमन ने कहा- यामिनी भाभी बहुत ही केयरिंग हैं और अच्छी कुक हैं। वैसे उनका पूरा नाम यामिनी है पर घर में उन्हें सब इंका बुलाते हैं।
दिल्ली के गवर्नर तेजेंदर खन्ना भी आरोपों के घेरे में
Friday, October 15, 2010
गेम्स से जुड़े घोटालों की जांच
Monday, October 11, 2010
नई ट्रेनों की 101वीं खेप मुंबई पहुंच गई।
मुंबई की लाइफलाइन बनकर करीब 33 महीने पहले जब दुल्हन की तरह से सजी-संवरी नई ट्रेनों ने पटरियों पर दौड़ना शुरू किया तो पहली बार रेल यात्रियों ने कसमसाते माहौल से जुदा थोड़ा खुलकर सांस लिया। एक-एक मिनट बचाने वाले लोकल के यात्रियों को 10-15 मिनट तक नई ट्रेनों का इंतजार करते देखा गया। नई ट्रेनों के आने का कारवां आगे बढ़ा और आज यह इस मुकाम पर पहुंच गया कि इसे सेलीब्रेट करने के लिए रेलवे के साथ राज्य सरकार भी आगे आ गई और विशेष डाक कवर भी रिलीज किया गया। जी हां, बीते हफ्ते नई ट्रेनों की 101वीं खेप मुंबई पहुंच गई। जून 2011 तक कुल 28 और नई ट्रेनें मुंबई में आने वाली हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इन ट्रेनों के आने से वास्तव में रेल यात्रियों को सुविधा और सुकून मिला है? या फिर यात्रियों की बढ़ती रेलमपेल ने रेलवे के इस प्रयास को फुस्स कर दिया है। बढ़ी हुई ट्रेनों और इनकी बढ़ी हुई फ्रीक्वेंसी का असर बढ़े हए यात्रियों पर कितना पड़ा है मध्य और पश्चिम रेलवे से प्राप्त आंकड़े थोड़ा सुकून दे सकते हैं कि दुनिया के सबसे कॉम्प्लिकेटेड सबर्बन नेटवर्क में शुमार होने वाले मुंबई की लाइफलाइन (लोकल ट्रेनों) में थोड़ी बहुत भीड़ कम होने लगी है। एक रेल यात्री की हैसियत से शायद आपने भी महसूस किया होगा। रेल अधिकारियों की मानें तो साल 2013 में जब कई इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम पूरे हों जाएंगे तो रेल यात्रियों को और भी कई सुविधाएं मिलेंगी। मगर पहले बात वर्तमान की करें। साल 2005-06 में जहां मध्य रेल के प्रति कोच में 269 यात्री ठुंसे होते थे, जुलाई 2010 तक मध्य रेल के मेन-हार्बर और ट्रांसहार्बर रूट को मिलाकर यह संख्या 228 तक आ गई। जबकि पश्चिम रेल में 2005-06 में इसकी लोकल की प्रति बोगियों में 295 यात्री सफर किया करते थे और 2010 में यह तादाद घटकर 247 तक आ गई। इसे थोड़ा सा जनरल टर्म में कहा जाए तो पहले एक बैठे हुए यात्री के पीछे 4 यात्री खड़े रहते थे। अब यह संख्या घटकर तीन तक आ गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो सेंट्रल रेल में 20 प्रतिशत और वेस्टर्न रेल में 17 प्रतिशत भीड़ में कमी हुई। बावजूद इसके कि इस दरमियान यात्रियों की संख्या में भी 7-8 प्रतिशत का इजाफा हुआ। यह देर से हुआ या समय पर हुआ, इसे बहस का मुद्दा बनाया जा सकता है। मगर यह भी सच है कि जिस रफ्तार से मुंबई की आबादी आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है लोकल ट्रेनों की भीड़ कम करना हमेशा से रेल अधिकारियों का सरदर्द बना ही रहेगा। रेल यात्रियों के लिए एक भरोसा देने वाली खबर यह भी है कि साल 2014 तक ऐसी 72 और ट्रेनों को मुंबईकरों की सेवा में लाकर पुरानी ट्रेनों को हटाने की प्लानिंग है। मगर यह भी काबिल-ए-गौर है कि जून 2011 से जून 2012 तक मुंबई में नई ट्रेनें नहीं आएंगी। अब बात करते हैं लोकल की बढ़ाई गई लोकल सेवाओं की। जुलाई 2010 तक के प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि मध्य रेल में साल 2005-06 में लोकल ट्रेनों की 1,203 सेवाएं हुआ करती थीं, जो जुलाई 2010 तक बढ़कर 1,556 हो गईं। इसमें 12 डिब्बों वाली लोकल की संख्या 218 से बढ़कर 577 हो गईं। पश्चिम रेल जो साल 2005-06 में जहां 1,017 सेवाएं चलाती थी, वो 2010 में बढ़कर 1,210 हो गईं। 12 डिब्बों वाली लोकल की संख्या बढ़कर 435 से 788 हो गई। जहां तक इस दरमियान बढ़ेे हुए यात्रियों की बात है तो मध्य रेल पर साल 2005-06 में रोजाना औसतन 30.84 लाख यात्री सफर करते थे वो साल 2010 जुलाई में बढ़कर 36.7 लाख हो गई। पश्चिम रेल में साल 2005-06 में 30.88 लाख यात्री थे और साल 2010 में इनकी संख्या बढ़कर 33.1 लाख हो गई। करती है जिसका एक और सिर्फ एक ही मकसद होता है पैसा कमाना। आज र्वल्ड क्लास स्टेशनों की बात होती है मगर कई स्टेशनों की हालत इतना बदतर है कि कुछ पूछिए मत। रेलवे को चाहिए कि वो किसी जनांदोलन का इंतजार न करे।
Saturday, October 2, 2010
यादव की सीधी आलोचना मुसलमानों को रास नहीं आई
फिरंगी महली ने कहा, अब तक सभी लोगों ने, यहां तक कि संघ परिवार ने भी परिपक्वता का परिचय दिया है और यह संयमपूर्ण व्यवहार आगे भी बना रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बयानबाजी नही होनी चाहिए, जिससे फिरकापरस्त ताकतों को हरकत में आने का मौका मिले। हालांकि उन्होंने माना कि हाई कोर्ट के फैसले से मुस्लिम समुदाय में मायूसी का भाव है, लेकिन जोर देते हुए कहा कि ' देश के व्यापक हित को देखते हुए हर एक को संयम बरतना चाहिए और ऐसी प्रतिक्रिया से बचना चाहिए, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द और अमन में खलल पड़ने की आशंका हो। ' फिरंगी महली की ही तरह इस्लामी शोध संस्थान दारुल मुसिन्नफीन के मौलाना मोहम्मद उमर ने कहा, टउन्होंने (मुलायम) मुस्लिम समुदाय की भावनाओं की ही बात कही है। मगर ऐसी टिप्पणी करने के लिए यह समय उचित नहीं है। ' गौरतलब है कि कल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने एक बयान जारी करके कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में आस्था को कानून तथा सुबूतों से ऊपर रखा है और देश का मुसलमान इस निर्णय से खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। मुलायम सिंह के इस बयान पर शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद मिर्जा अतहर ने कहा कि ऐसे समय जब हर आदमी समाज में अमन और शांति बनाए रखने की कोशिश में है, मुलायम सिंह यादव जैसे बड़े नेता को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी अदालती मामले में एक पक्ष जीतता है, दूसरा हारता है और जब हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का रास्ता खुला है और विवाद को आपसी सहमति से सुलझा लेने का विकल्प भी सामने है तो इस तरह की टिप्पणी गैर जरूरी लगती है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के एक अन्य सदस्य एवं प्रतिष्ठित शिया उलेमा मौलाना हमीदुल हसन ने यादव के बयान पर कोई टिप्पणी करने से इंकार किया है। हालांकि, उन्होंने भी कहा कि सभी को संयम का परिचय देना चाहिए और ऐसी किसी भी बयानबाजी से बचना चाहिए, जिससे साम्प्रदायिक एकता खंडित होने की आशंका हो। ऑल इंडिया सुन्नी बोर्ड के मौलाना मोहम्मद मुश्ताक ने कहा है कि अपने वादों और अपीलों का मान रखते हुए किसी भी मुस्लिम नेता ने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है, जिससे माहौल बिगड़े और जुमे की नमाज के बाद भी यह अपील फिर दोहरायी गई है कि आपसी शांति और सौहार्द बनाए रखने में सबको सहयोग देना है।