संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी देने में हो रही देरी से खफा आरएसएस ने मर्सी पिटिशन के निपटारे की समय सीमा तय करने की मांग की है। संघ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को इस संबंध में विशेष और असीमित अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति द्वारा मर्सी पिटिशन स्वीकार कर लिए जाने के बाद उसके निपटारे की कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। मर्सी पिटिशन के निपटारे की समय सीमा तय नहीं किए जाने पर संघ के मुखपत्र पांचजन्य में कहा गया है, 'मैडम प्रेजीडंट, फांसी मत लटकाओ, फांसी पर लटकाओ, फांसी पाए अपराधी सरकार की प्रॉपर्टी नहीं हैं।' गौरतलब है कि मर्सी पिटिशन के निपटारे की समय सीमा तय नहीं होने के कारण उसका निपटारा होने तक फांसी नहीं दी जा सकती। ऐसे में न सुप्रीम कोर्ट उन पर दबाव डाल सकता है, न ही सरकार। वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने कहा कि फांसी की सज़ा पर तामील नहीं करना या उसे टालना अपराधियों के हौसला बढ़ाने के समान है। नई यूपीए सरकार ने साफ कर दिया है कि संसद हमला मामले के अपराधी अफजल गुरु को फांसी देने के मामले में कोई जल्दबाजी नहीं की जाएगी। मौत की सजा पाए अपराधियों के राष्ट्रपति से माफी की अपील के जितने भी मामले हैं उन सब पर क्रम से विचार होगा। गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने सोमवार को संवाददाताओं से बातचीत करते हुए बताया कि मौत की सजा पाए 28 कैदियों के मामले हैं। उन्होंने कहा, 'मैंने गृह सचिव से इन मामलों पर सूची में क्रमानुसार विचार करने को कहा है जिससे याचिकाओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का फैसला किया जा सके'। बकौल चिदंबरम, 'गृह सचिव पहला मामला देखेंगे। फिर हम सूची में क्रम से बाद के कैदियों के मामले देखेंगे। अधिकारी मुझे एक-एक करके हर मामले के बारे में जानकारी देंगे।' जब उनसे पूछा गया कि आखिर अफजल गुरु की दया याचिका पर कब विचार किया जाएगा तो चिदंबरम ने कहा, 'अफजल की याचिका सूची में 22वें नंबर पर है। यह कई बार कहा जा चुका है और मैं चाहता हूं कि आप ये दो नंबर याद रखें - 28 में से 22वां।
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