Saturday, September 18, 2010

राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला 24 सितंबर को ही आएगा।

राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला 24 सितंबर को ही आएगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें मध्यस्थता के जरिये सुलह कराने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि यह मामले के अंतिम निपटारे में बाधा खड़ी करने की कोशिश है। रमेश चंद्र त्रिपाठी ने विवाद को बातचीत से सुलझाने और फैसला टालने के लिए अर्जी दाखिल की थी। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अखिल भारत हिंदू महासभा ने इस पर आपत्ति दाखिल की थी। अर्जी को खारिज करते हुए तीन जजों की बेंच ने कोर्ट से बाहर सुलह की इस कोशिश को गलत मंशा से की गई कोशिश माना और 50 हजार रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया। बेंच में जस्टिस एस.यू. खान, सुधीर अग्रवाल और डी.वी. शर्मा हैं। बेंच ने कहा, विभिन्न पक्षों से जो वकील पेश हुए, चाहे वे वादी के हों या प्रतिवादी पक्ष के, गंभीरता से इस याचिका का विरोध किया है। हमें इस अर्जी को खारिज करने में कोई हिचक नहीं है। जजों ने कहा कि आवेदक ने बिना किसी विधिसम्मत तर्क या कारण के अर्जी दाखिल की है। हम इस कोशिश को गलत मंशा से की गई मानते हैं और इस पर हर्जाना देगा होगा। अर्जी खारिज करने के पहले जजों ने इस मामले से जुड़े पक्षों से पूछा कि क्या वे समझौते के लिए बात करना चाहते हैं, इस पर किसी ने रुचि नहीं दिखाई। साठ साल पुराने इस मामले का फैसला आने पर हिंसा भड़कने की आशंका को देखते हुए कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि सुरक्षा उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी है। बेंच ने कहा, हमने अखबारों में पढ़ा है कि प्रधानमंत्री ने लोगों को आश्वस्त किया है कि वह किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। हम इस पर कमेंट नहीं कर सकते, लेकिन सरकार पर भरोसा है। कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए क्या जरूरी है, किसी शख्स या संगठन की सुरक्षा के लिए क्या जरूरी है, इसका सबसे बढ़िया फैसला सरकार ही कर सकती है। सुरक्षा इंतजाम करना राज्य की जिम्मेदारी है। इसके लिए अधिकारी हैं, जो उपायों का आकलन कर सकते हैं।
इससे पहले ही इस मामले में पक्षकार कह चुके हैं कि इस विवाद का हल सुलह-समझौते के जरिये सम्भव नहीं दिखाई पड़ता। ऐसे में कोर्ट का फैसला जरूरी है। दोनों पक्षों को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और निर्णय आने के बाद हिंसा की बात पूरी तरह से निर्मूल है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और पक्षकार हाजी महमूद की ओर से दर्ज कराई गई आपत्ति में कहा गया कि फैसले के पहले समझौते की अर्जी देना निहित स्वार्थों से प्रेरित है। बोर्ड की ओर से यह भी कहा गया कि पिछले साठ सालों से मामले में समझौते की ओर कोशिश नहीं की गई थी फैसले के पहले इस प्रकार की अर्जी देना गलत है। 13 सितंबर को सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के मुकदमे के विपक्षी संख्या 17 रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने विशेष पूर्ण पीठ के ओएसडी को अर्जी देकर कहा था कि वर्तमान समय में देश आतंकवाद, माओवाद सहित अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है ऐसे में इस विवाद को आपसी सुलह समझौते से हल किया जाए। इसपर विचार के लिए विशेष पूर्ण पीठ ने 17 सितंबर की तारीख नियत करते हुए पीठ ने दोनों पक्षों से आपत्तियां प्रस्तुत करने को कहा था। हिन्दू महासभा की ओर से दायर आपत्ति में कहा गया कि फैसला आने के पहले किसी प्रकार की कोई अर्जी दायर नहीं की जा सकती। यह भी कहा कि दोनों पक्षों को न्यायापालिका पर पूर्ण विश्र्वास है तथा फैसले से पहले किसी प्रकार का सुलह समझौता संभव नहीं है।

No comments: